Monday, April 30, 2012

मेरा कसूर किया था ?


 मैं तोह बस एक आम आदमी हु जो यह खुली आसमान के निचे आप सब के साथ जीना चाहता हु और आप सब के साथ मिलकर  कुछ सपना बुना करता हु. मैं भी आप की तरह कुछ करना चाहता हु और ओह सरे सपने पूरा करने मे लगा रहता हु जो मैंने आप सब के साथ जीने के बढ़ सिखा हु. बस येही रह के इंतजार मे गुण गुनते रहता हु और कहिले निकल परता हु आप से दोस्ती करने के लिया फिर देखने को मिलता है कही खुसी है तोह कही गम है फिर भी लोग आपने जीवन का गाडी चलारही है. जब मैं जा ता हु उनसे ओह गम की बाते करने तोह हमे कहते है चल पर और मैं येही गुनगुनाता रहता हु ओह "मेरी बंधू रे" और चलता रहता हु उसे मंजिल के तलाश मे जो मैंने आप सब के साथ देखाता. पर कुछ पल चलते ही हम रुक जाते है एक मोड़ पर जहा हम कुछ बिसराम करले और वहा पर देखने तोह मिलता है की हर कोई उशी मंजिल के तरफ जाने की बात कर रही है तोह हम और कुश होजाते है की सफ़र के मित्र मिलगया और खुसी से आखो से आसू निकल परते है. जब हम निकल हम निकलते है एकही मंजिल के तरफ एक साथ मेल कर बश उशी समय एक खास कर आवाज़ सुने को मिलता है और ओह आवाज़ हम सब को लेकर चल्देता है उष जगह जहा हमारे जैसे और लोग बिना मंजिल को पाए जाचुके है कुछ लोग की करतूतों से. इसे मे वाला मेरा किया कसूर था जो हमें जीना नहीं दिया, किया हम ने गलत किया की उष मंजिल के तरफ निकल पड़े आप के साथ. बस येही नहीं समझ मे आया की हम जिया तोह कैसे जिया और जिया वाला तोह किसके लिया जिया कियो यह दुनिया मे लोग खुद से ना सही दुसरे को भी नहीं जिनते देते. बस मैं निकल पड़ा उष तरफ जहा मेरे जैसे किते और बैठे हुआ है. 
 
          -मेरा येही कहना है की खुद जियो और दुसरे को भी जीने दो येही हमारी जिंदगी का आसली पहिचान है!!

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