जब तक हम पे आतियाचार होता रहा तब तक ओह तुम्हरे साथ देते रहे और दोस्ती निभाते रहे,जब ओह हमें आपने दोस्त समझ ने लगे और हमें हमारे काम मे हात बटाने की बात की तोह ओह तुम्हारे दुसमन बने यह कैसा दोस्ती निभाते हो तुम सब, इतने साल से तुम्हे काफी कुछ दिया फिर भी तुम लोग उसको आपना न समझा और बिरोध पे बिरोध करते रहे हो, पर आज हमें कुछ देने की किया सब्द निकल दिया तुम तोह दुसमन ही बन बैठे हो उसका, कुछ भी मिलाना हो तुम उनके दरबार के दरबाजा खटकाया और समस्या का हल किया,पर ओह खुद हमारे साथ आया तोह तुम को बुरा लग गया यह कैसा खेल है तुम्हारे....यह गलती भी उसका ही है जो अभी तक न हमें समाज सका है न तुम्हारे बिरोधी बात को.
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